23/09/2021
#मतला
आओ तो शह के दर पा अक़ीदा समेट के।
जाओगे नेमतों का ख़ज़ाना समेट के।।
बादे नमाज़ शाह पा सलवात भेज कर।
दिल को मिला सुकूँन मुसल्ला समेट के।।
एक वार में हबीब ने मैदाने जंग में।
पासा पलट के रख दिया सब का समेट के।।
रह कर ज़मीं पा ख़ुल्द का दीदार कीजये।
आँखों मे करबाला-ए-मुअल्ला समेट के।।
रोज़े दहूम हुसैन ने महदूद कर दिया।
बातिल का एक-एक इलाका समेट के।।
करबोला बला में शाह की मेराज देखिये।
ख़ाके शिफ़ा में रख दिया सजदा समेट के।।
हमको दरे हुसैन से सब कुछ तो मिल गया।
हम क्या करेंगे दौलत-ए-दुनिया समेट के।।
ख़ैमे हटाता कौन ये ज़ैनब का था कमाल।
ग़ाज़ी ने सब्र कर लिया गुस्सा समेट के।।
मशकीज़ा देखती रही हैरत से फौजे शाम।
नहरे फुरात ले गया सक़्क़ा समेट के।।
मौला ने जब रजस में किया ज़िक़्र ए ख़ानदान।
बातिल ने अपना रख लिया शजरा समेट के।।
अंसारे शाह टूट पड़े फौजें शाम पर।
लब्बैक या हुसैन का नारा समेट के।।
ज़ैनब ने तोड़ डाला गुरूरे अमीरे शाम।
ख़ुत्बो के साथ ले गई कूफ़ा समेट के।।
#तज़मींम
रखने को लाज वादा ए, तिफली की दश्त में।
एक दिन बनाया शह ने ज़माना समेट के।।
मक़तल में जगमगाते रहें, आफ़ताबे हक़।
बैठा रहा यज़ीद अंधेरा समेट के।।
#मक़ता
हुर शाहेदीं के क़दमो में, आया है यू ''रिज़ा''।
अपने परो को जैसे परिन्दा समेट के।।
#क़लाम:- जनाब रज़ा अली खां
#तर्ज़_निगार:- जनाब रिज़वान साहब